प्रत्येक मनुष्य का स्वप्न होता है कि वह अपने लिए सुंदर से सुंदर और आकर्षक भवन का निर्माण करवाएँ ताकि उसे भवन में रहने पर सुख – शांति, आरोग्यता, संपदा, वैभव आदि की प्राप्ति हो। परंतु ज्ञान के अभाव में वह इन सब कारणों से वचिंत हो जाता है, जिसका मुख्य कारण है ‘वास्तु दोष’।
ज्योतिष की तरह ही वास्तु सत्य विज्ञान है, इसका हर पहलू वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित है। यदि घर, मकान, कोठी, दुकान, फैक्ट्री आदि का निर्माण वास्तु के अनुसार करवाया जाए तो उसमे रहने वाले लोग सुखी और संपन्न रहते है।
वास्तु के लिए हमे दिशाओं का ज्ञान होना अति आवश्यक है क्योंकि वास्तु का संबंध ही दिशाओं पर आधारित है। दिशाओं के साथ साथ अच्छे प्लाट और भूमि का चयन करना भी आवश्यक है और मकान अथवा किसी भी प्रकार के निर्माण में सभी छोटे – बड़े मूलभूत वास्तु के वैज्ञानिक पहलूओं पर भी ध्यान देना जरुरी है।
प्राचीन समय में महलो, भवनों, पुराने किलो, कुएँ, तालाबो, आदि का निर्माण वास्तु के अनुसार ही होता था । रसोई, स्नानघर, शयन कक्ष, सभा करने के लिए अलग से स्थान, युद्ध संबंधी शस्त्र रखने के लिए शस्त्रागार, विदयालय निर्माण आदि सभी का वास्तु द्वारा विशेष ध्यान रखा जाता था ।
ज्योतिष शास्त्र की तरह वास्तु शास्त्र का ज्ञान भी हमारे ऋषि – मुनियों की देन है । किसी भी प्रकार के भवन, दुकान, कोठी, फ्लैट आदि निर्माण में पांचो तत्वों का विशेष ध्यान रखा जाता है।
‘ अग्नि, पृथ्वी, वायु, जल एवं आकाश‘। इन पांचो तत्वों का दिशाओं के अनुसार समन्वय करना ही वैज्ञानिक रूप से ‘वास्तु‘ कहलाता है।