मनुष्य हमेशा इस बात को लेकर चिंतित रहता है कि कही मुझे नरक न मिल जाये । मैं स्वर्ग चला जाऊ यह धारणा हमेशा बनी रहती है । पहले हम मनुष्य योनि , देवता योनि ( सूक्ष्म शरीर ) और मोक्ष ( कारण शरीर ) के अंतर को समझने की कोशिस करते है ।
मनुष्य का स्थूल रूपी शरीर 24 तत्वो से मिलकर बनता है जिसमे 5 प्राण , 5 तंत्रमहाभूत , 5 ज्ञानेद्रि , 5 कर्मेन्द्रि , मन , बुद्धि , चित और अहंकार होते है । ये 24 तत्व प्रथ्वी लोक पर रमण करते है । इसमे वायु तत्व , अग्नि तत्व और जल तत्व प्रधान होता है ।
देवता योनि ( सूक्ष्म शरीर ) मे 18 तत्व होते है । 5 ज्ञानेद्रि 5 प्राण , चित , मन और बुद्धि ये मिलकर सूक्ष्म शरीर का निर्माण करते है । सूक्ष्म शरीर मे 5 कर्मेन्द्रि और अहंकार नहीं होता है । इसी को देवता योनि कहते है । यह योनि वायु तत्व और अंतिरक्ष तत्व प्रधान होती है । देवता हमे देख सकते है हमारी मदद कर सकते है लेकिन हम सूक्ष्म शरीर वाली आत्माओं को देख नहीं सकते है । क्योकि सूक्ष्म शरीर वाली आत्माओं का तत्व का अनुपात भिन्न हो जाता है ।
मोक्ष ( कारण शरीर ) मे सिर्फ 2 तत्व रह जाते है ज्ञान और प्रयत्न । ज्ञान और प्रयत्न आत्मा का तत्व होता है । मोक्ष मे आत्मा परमात्मा के आँगन मे चली जाती है । तथा वहाँ से इस ब्रह्मांड के सभी लाखो लोको मे भ्रमण करती रहती है । तथा परमात्मा के कार्य मे मदद करती है । जिस लोक मे ज्ञान की कमी हो जाती है या अधर्म बढ़ जाता है तो उस लोक मे पुनर्जन्म लेकर ज्ञान और धर्म को बढ़ाती है । उसी को हम भगवान का अवतार बोलते है ।
अब मनुष्य योनि से हम देवता योनि मे होते हुए मोक्ष को प्राप्त कर सकते है । मनुष्य योनि मे रहते हुए अगर उच्च कोटी के सतोगुणी कर्म किए तो सीधा मोक्ष भी मिल सकता है । अगर सतोगुण के साथ साथ रजोगुण के उच्च कर्म करते हुए देवता योनि मे भी जा सकते है । अगर आपके उच्च रजोगुण है तो दुवारा मनुष्य योनि मे आना पड़ेगा ।
पं. यतेन्द्र शर्मा ( सनातन दार्शनिक एवं चिंतक )
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