सबसे पहले हमे पाप को समझना चाहिए कि पाप क्या है ? मन और इंद्रियों की खुशी के लिए किया गया कर्म पाप के दायरे मे आता है । और आत्मा की खुशी के लिए किया गया कर्म पुण्य के दायरे मे आता है । मन प्रकृति का रूप है और आत्मा परमात्मा का रूप है ।
मन का संबंध चित के साथ होता है । और चित मे पूर्व जन्मो के पाप और पुण्य संचित होते है । जब मनुष्य इस स्थूल रूपी शरीर को प्राप्त करता है तो चित मे संचित पाप मन के साथ संबंध स्थापित कर लेते है । इसलिए मनुष्य का ध्यान हमेशा पापो पर चला जाता है । और उसको पाप करने मे आनंद की अनुभूति होती है ।
इसलिए जब मनुष्य इस लोक मे कर्म करता है तो मन को हमेशा संचित पाप प्रभावित करता है । और मानव के मन मे लगातार पाप करने की इच्छा जाग्रत रहती है । जबकि उसने न चोरी सीखी होती है न झूठ सीखी होती है फिर भी बच्चा आपने आप यह पाप कर्म करने लग जाता है ।
इसको एक वैज्ञानिक उदाहरण के माध्यम से समझ सकते है । जैसे आपके कम्प्युटर मे कोई वायरस है जब भी आप कोई भी काम अपने कम्प्युटर से करते है तो वो वायरस हमेशा फाइल के साथ मे आ जाता है । और आपका ध्यान अपनी तरफ खींचता है । ऐसे ही मनुष्य के चित अन्तःकरण मे एक पाप का वाइरस होता है । जो हमेशा निर्दोष मनुष्य से भी पाप करवा देता है ।
राजा पांडु और राजा दशरथ को पिछले जन्म का शाप लगा था वो शाप राजा पांडु और राजा दशरथ के अन्तःकरण मे संचित था । जिसके कारण पांडु से किंदम ऋषि की हत्या हो गयी थी और राजा दशरथ से श्रवण कुमार की हत्या हो गयी थी । अगर आप इस सिधान्त को जान जाते हो तो आप पाप रूपी वायरस को साधना रूपी तप से हमेशा के लिए डिलिट कर सकते हो ।
पं. यतेन्द्र शर्मा ( सनातन हिन्दू धर्म प्रचारक एवं ज्योतिषविद् )
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