एक बार वेद व्यास जी ने उपरोक्त प्रश्न पाराशर ऋषि से पूछा कि आत्मा के इतने रूप क्यो है ? एक आत्मा मृत लोक मे 84 लाख योनियो मे कष्ट भोगती है एक आत्मा देवलोक मे आनंद लेती है और कुछ आत्माये मोक्ष मे चली जाती है ।जो भगवान के आँगन मे रमण करती है । क्या कारण है ?
पाराशर जी ने कहा प्रिय वेद व्यास जब मनुष्य इस लोक मे जन्म लेता है तो वह उत्तम कर्म करना चाहता है । लेकिन उसके संचित कर्मो के कारण वो उत्तम कर्म नहीं कर पाता है । जब वह मृत्यु को प्राप्त होता है तो आत्मा चाहती है कि उसको देवलोक प्राप्त हो जाये लेकिन पाप कर्मो के बोझ के कारण आत्मा अंतिरक्ष मे रमण करते करते उसको स्वत ही माँ के गर्भ मे अति शीघ्र जाने की इच्छा रहती है । उसको देवलोक जाने का समय ही नहीं मिल पाता है ।
यही प्रश्न भगवान राम ने अपने गुरु वशिष्ठ जी पूछा कि गुरुदेव यह आत्मा का राज क्या है ? गुरु जी ने कहा प्रिय राम बगीचे से कुछ पुष्प लेकर आओ । भगवान राम पुष्प लेकर आ रहे थे तो रास्ते मे एक कीड़ा अपनी मस्ती मे खेल रहा था । भगवान राम ने उसको बड़े ध्यान से देखा और सोचने लगे कि यह कीड़ा इतना मस्त क्यो है ?
आश्रम मे आकर भगवान राम ने गुरु जी को कहा कि गुरु जी रास्ते मे एक कीड़ा बहुत मस्ती से खेल रहा था । क्या रहश्य है कि वो कीड़ा निकृस्त योनि मे इतना खुस क्यो था ? गुरु वशिष्ठ ने कहा राम यह कीड़ा 3 बार इंद्र देवता रह चुका है । इसकी आत्मा बहुत महान थी लेकिन पाप कर्मो के कारण इसकी आत्मा को कीड़ा योनि मे आना पड़ा है ।
यह कीड़ा खुस होकर इसलिए खेल रहा था कि इसके चित के वो अच्छे संसकार जाग्रत हो रहे थे । जो कभी इसने अच्छे कर्म किए थे । पाराशर जी ने कहा बेटा व्यास अगर आप बहुत महान बनना चाहते हो आप देव योनि या मोक्ष मे जाना चाहते हो आपको अपने कर्मो को महान बनाना चाहिए । जिससे आपकी आत्मा को देव लोक या मोक्ष मिल जाये ।
पं. यतेन्द्र शर्मा ( वैदिक & आध्यात्मिक फ़िलॉसफ़र )
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