बुरे और अच्छे कर्म को पहचानना न तो किसी संत के बस की बात है न किसी ज्ञानी के बस की बात है । और साधारण इंसान तो इसको जानता ही नहीं है । हर संत महात्मा ,ज्ञानी और साधारण मनुष्य अपने निहित स्वार्थ के लिए बुरे कर्म को ही अपनी इच्छा अनुसार अच्छा बना लेता है । जिस प्रकार कर्ण ,गुरु द्रोणाचर्य और कृपाचार्य ने अपने बुरे कर्म को और दुर्योधन के नमक के बदले अच्छे कर्म मे बदलने की कोशिस की ।
बुरे कर्म वो कर्म होते है जिनको करने बाद भय लगता है और रात को नीद नहीं आती है । उन कर्मो को करने के बाद आपको नकली आनंद की अनुभूति तो होती है । और अच्छे कर्म वो होते है जिनको करने बाद आपको न तो भय लगता है और रात को चेन और आनंद की नीद आती है ।
बुरे और अच्छे कर्मो का फैसला दो प्रकार से होता है । एक तो सरकार और समाज फैसला करती है और दूसरा भगवान फैसला करता है । जो फैसला समाज और सरकार करती है वो तो गलत भी हो सकता है पर जो फैसला भगवान करता है वो कभी गलत नहीं होता है । बुरे कर्मों का आधार भूख ,धन , स्त्री ,जमीन ,सत्ता ,यश ,ईर्षा और शक्ति मुख्य तौर पर होते है । इस सबकी प्राप्ति लिए मनुष्य बुरे और अच्छे कर्म करता है ।
अगर आप भूख से तड़फ रहे है तो आपको पेट भरने के लिए बुरे या अच्छे कर्म करने होंगे । अगर आपने किसी का भोजन छीना और खा लिया तो बुरा कर्म हो जाएगा । यह छीना हुआ भोजन आपकी आत्मा स्वीकार नहीं करेगी तथा यह बुरा कर्म आपके चित मे संचित हो जाएगा । आप बुरे कर्म करके धन कमाते हो जैसे आपने किसी का अपहरण किया ,चोरी की ,रिश्वत ली या ढाका डाला । ऐसा धन आपके बुरे कर्मो की श्रेणी मे चला जाएगा । ऐसे धन से आपकी आत्मा डर जाएगी और हमेशा डर लगता रहेगा ।
सबसे ज्यादा बुरे कर्म तो स्त्री को लेकर ही होते है क्योकि स्त्री की आत्मा का संबंध तो सीदे सीदे आपके कर्म के साथ होता है । इसी प्रकार हम जमीन और जायदाद को लेकर बुरे कर्म करते है । दूसरे के मकान को और जमीन को कब्जा कर लेते है इसके कारण जो आत्मा की बददुआ लगती है वो भी बुरे कर्म के खाते मे चली जाती है । इसी प्रकार सत्ता प्राप्ति के लिए हम जघन्य बुरे कर्म करते है। अपने निहित स्वार्थ के लिए लाखों लोगो की हत्या कर देते है या करवा देते है ।
इसी प्रकार हम अपने यश और शक्ति को बढ़ाने के लिए दूसरे लोगो के यश और शक्ति को कुचलते है । अपने को हम श्रेष्ठ बताते है और दूसरों को नकारा या अज्ञानी बताते है । ईर्षा और अहम से फ़ेस बुक पर सुबह से शाम तक एक दूसरे की बुराई करते है एक दूसरे को गालियां दे रहे तथा नीचा दिखने मे लगे हुए है । एक दूसरे के ज्ञान पर ईर्षा से अंधे होकर कटाक्ष करते है । ये सभी घोर और जघन्य बुरे कर्मो की श्रेणी मे आते है ।
बुरे और अच्छे कर्म का निर्धारण करने के लिए आप महीने मे सिर्फ एक बार ध्यान मे योग मे साधना मे मरने की कल्पना करो कि मैं मर रहा हूँ । जब आपको लगेगा कि मैं मर रहा हूँ और मेरे प्राण निकलने वाले है । तो उस समय आपके 1 महीने के सभी बुरे कर्म और अच्छे कर्म आपके पास आ जाएँगे और आपकी चारपाई के चारो तरफ घेरा बना लेंगे । और आपको चिल्ला चिल्ला कर बताएँगे कि क्या क्या बुरा कर्म किया है आपने इस महीने मे । और मौत के बक्त आप बुरी तरह से उन बुरे और जघन्य कर्मों के डर भयभीत हो जाएँगे ।
आपको मरने से डर लगेगा । इसी प्रकार आपके सभी अच्छे कर्म भी आपके चारों तरफ खड़े होगे और बोल रहे होने जाओ खुस होकर मरो आपने दुनिया के लिए अच्छे कर्म किया है । आपको स्वर्ग मिलेगा और चेन से म्रत्यु को प्राप्त करोगे । जब भय के कारण म्रत्यु होती है तो आत्मा का जाने का रास्ता बुरे मार्ग से होता है और जब प्रसन्न मुद्रा मे म्रत्यु होती है तो आत्मा का जाने रास्ता अच्छे मार्ग से होता है । इसलिए अपने बुरे और अच्छे कर्मो का विश्लेषण रोजाना सोने से पहले अवश्य करो। ऐसा करने से आपका जीवन मे आनंद कूट कूट कर भर जाएगा ।
पं. यतेन्द्र शर्मा ( ज्योतिषविद् एवं आध्यात्मिक चिंतक )
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