यह सत्य है कि साधना करने से शरीर के विकार दूर हो जाते है । मनुष्य मे विकार उसके पैदा होने के साथ ही चित मे आ जाते है । जो विकार चित मे संचित होते है वो पूर्व जन्म के कर्मों के कारण होते है । अब साधना से मन को मूलाधार चक्र से लेकर ब्रह्मरंध्र तक तथा ब्रह्मरंध्र से लेकर मूलाधार तक बार बार संचार किया जाये तो चित मे मौजूद विकार समाप्त होने शुरू हो जाते है । यह अभ्यास पहले 10 मिनट से प्रारम्भ करना चाहिए तथा धीरे धीरे इस अभ्यास को 1 घंटे तक ले जा सकते है ।
ये विकार उसी प्रकार समाप्त हो जाते है जैसे अन्न को पकाने से अन्न अपनी उगने की क्षमता खो देता है इसी प्रकार जब मन साधना से चित मे संचित विकारो को तपा देता है या पका देता है तो विकार शरीर मे उत्पन्न होनी की या पैदा होने की क्षमता खो देता है । साधना का अभ्यास लगातार करना चाहिए । लेकिन ध्यान रखना चाहिए साधना के साथ साथ भोजन यानि अन्न की महत्वता भी होती है ।
अगर आपका अन्न यानी भोजन सात्विक होगा तो आपकी साधना भी सात्विक होगी नहीं तो आपको साधना के साथ साथ अहम और घमंड आ जाएगा । तामसिक अन्न किसी भी साधना मे वर्जित होता है ।
अगर आपकी साधना पूर्ण हो जाती है और अहम के अवगुण संचित हो गए तो फिर वह साधना बेकार हो जाएगी । इसलिए साधना के साथ साथ सात्विक भोजन भी होना चाहिए । ध्यान , साधना और समाधि मे अहम और तामसिक अन्न का प्रयोग पूर्ण रूप से बंद कर देना चाहिए । ऐसा करने से आपके चेहरे और शरीर का आभामंडल बढ़ जाएगा ।
पं. यतेन्द्र शर्मा ( ज्योतिषविद् एवं वास्तु विशेषज्ञ )
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