शरीर में जब मन और आत्मा का संधान होता है तो एक बहुत ही प्रभाव शाली उर्जा उत्पन्न होती है . यह उर्जा जिधर जाती है उधर या तो कल्याण करती है या तवाही करती है . इस उर्जा को हम प्राण शक्ति कहते है .
आत्मा का वास नाभि केंद्र में होता है और मन का वास ह्रदय में होता है . जब मन और आत्मा का संधान खुसी के वशीभूत होकर नाभि से होता है तो वह उर्जा दुआ में बदल जाती है तथा जिस मनुष्य को दी जाती है उसका कल्याण होता है .
इसी प्रकार जब मन और आत्मा का संधान दुखी रूप में होता है तो वही उर्जा नाग उप प्राण के कारण विष रूप धारण करके बददुआ में परिवर्तित हो जाती है . तथा बुरे करने वाले मनुष्य का विनाश कर देती है .
यह मन और आत्मा के संधान का योग अचानक ही बनता है . यह एक प्राण शक्ति का रूप लेल लेता है . इसलिए अचानक ही मन और आत्मा का जब यह योग बनता है तो दुआ और बददुआ का रूप ले लेता है .
अगर यही योग मन और बुद्दि से बनता है तो दुआ और बददुआ का असर नहीं होता है . जैसे आपने किसी भिखारी को भीख नहीं दी तो उस भिखारी की बददुआ आपको नहीं लगेगी क्योकि कि वह भिखारी आत्मा को मारकर भीख मांगता है .
पं. यतेन्द्र शर्मा (दार्शनिक एवं सनातन धर्म प्रचारक )