आखिर कोई भी योगी ,संत, महात्मा और ऋषि भगवान के दर्शन करने के बाद क्यो नहीं बता पाता है कि भगवान कैसा है उसका रूप क्या है ? आखिर क्या है इसका वैदिक वायो वैज्ञानिक रहश्य ?

यह सत्य है कि बहुत से ऋषिओ ने भगवान के दर्शन किए है और भगवान स्वयं अवतार के रूप मे भी मनुष्य के शरीर मे आए है । जिनके शरीर मे स्वयं भगवान अवतार के रूप मे आए है उन देवताओ को भी पता है । पर कोई बता क्यो नहीं पाता है ?

जब योगी मन और आत्मा को एकाग्र करके समाधि मे जाता है तो भगवान के दर्शन कर लेता है । लेकिन जब आत्मा परमात्मा के दर्शन करती है तो उस समय पर आत्मा की गति इतनी तीव्र होती है कि आत्मा के साथ बुद्धि का संपर्क नहीं रहता है । जब आप किसी चीज़ को देखते हो चक्षु इंद्री और बुद्धि के माध्यम से उसका वर्णन करते हो । बुद्धि ही किसी चीज़ की  व्याख्या करती है ।

जब कि बुद्धि ब्रहम लोक मे जा नहीं पाती है क्योकि बुद्धि की सीमा पार्थिव लोको तक सीमित है । और आत्मा की सीमा भगवान तक है । जब आत्मा परमात्मा से संपर्क करती है तो पार्थिव तत्वो और शरीर मे काम करने वाली इंद्रिया उसका वर्णन नहीं कर पाती है । जैसे कि मोबाइल फोन की एक सीमा होती है उसके बाहर वो काम नहीं कर पाता है । लेकिन सेटेलाइट पूरे संसार के हर कोने मे काम कर है ।

बुद्धि 4 प्रकार की होती है 1- बुद्धि , 2- मेधा बुद्धि , 3- ऋतंबरा बुद्धि 4 प्रज्ञा बुद्धि
सिर्फ प्रज्ञा बुद्धि ही मन और प्राण के साथ विभिन्न लोको मे जा सकती है । लेकिन जब योगी भगवान के दर्शन करता है तो प्रज्ञा बुद्धि भी वहाँ काम नहीं करती है ।
इसलिए कोई भी ऋषि और योगी आज तक भगवान के रूप का वर्णन नहीं कर पाया है । अगर कोई गुरु कहता है कि वो भगवान से रोज बात करता है या आत्माओं से बात करता है । वह पूर्ण रुपेण पाखंडी है ।

पं. यतेन्द्र शर्मा ( वैदिक & सनातन चिंतक )