क्या कहूँ और क्या लिखूँ समझ नहीं आ रहा।

क्या कहूँ और क्या लिखूँ समझ नहीं आ रहा। आज जहाँ देखो राधे माँ के बारे में मीडिया और सोशल मीडिया हर जगह बोला जा रहा है। ये कैसी धर्म वव्यस्था है हमारे हिन्दू समाज की कि चंद पैसों के लिए कुछ हमारे विद्वत गण बिककर के महामंडलेश्वर की उपाधि किसी को भी बिना जांच पड़ताल के दे देते हैं । आज ऐसे ही अनपढ़ और चरित्रहीन लोगों को महामंडलेश्वर या शंकराचार्य बना देते हैं। ये विद्वत समाज के साथ न्याय नहीं अन्याय है। ऐसे लोगों के बिकने पर लोगों का, जो सच्चे संत या साधू इत्यादि हैं उन पर से ही भरोसा उठ जाता है। बिना किसी भी तरह से जांच पड़ताल के कि वो उस उपाधि के सही काबिल है या नहीं तभी पद पर आसीन करना चाहिए अगर वो उस पद के लिए उपयुक्त नहीं है तो तत्काल ऐसो के खिलाफ उचित कार्यवाही करनी चाहिए। अगला नंबर … [ Read More ]

वाणी, दिव्य वाणी और सिद्ध वाणी क्या है ? और कहाँ से आती है ये वाणी ?

यह सत्य है कि जो बोला जाता है वही वाणी होती है । पर वाणी का विज्ञान बहुत गहरा है । यह उसी प्रकार गहरा है जिस प्रकार एक गाना सुनने वाले को सिर्फ यह पता होता है कि स्पीकर गाना गा रहा है । लेकिन सत्य यह कि स्पीकर के पीछे जो सर्किट का जंजाल होता है वही उस गाने को गाता है । इसी प्रकार हमारी वाणी के पीछे कुछ नाड़ियों और तरंगो का जंजाल होता है । जिसको हम देख नहीं पाते है । वाणी का संबंध धुलोक (अंतिरक्ष) से होता है, धुलोक का संबंध चित से होता है , चित का संबंध बुद्धि से होता है , बुद्धि का संबंध अहंकार से होता है , अहंकार का संबंध मन से होता है और मन का संबंध नाभि से होकर व्यान प्राण से होते हुए जिव्या से होता है । वाणी हमारे व्यान प्राण से संचालित होती … [ Read More ]

आखिर कोई भी योगी ,संत, महात्मा और ऋषि भगवान के दर्शन करने के बाद क्यो नहीं बता पाता है कि भगवान कैसा है उसका रूप क्या है ? आखिर क्या है इसका वैदिक वायो वैज्ञानिक रहश्य ?

यह सत्य है कि बहुत से ऋषिओ ने भगवान के दर्शन किए है और भगवान स्वयं अवतार के रूप मे भी मनुष्य के शरीर मे आए है । जिनके शरीर मे स्वयं भगवान अवतार के रूप मे आए है उन देवताओ को भी पता है । पर कोई बता क्यो नहीं पाता है ? जब योगी मन और आत्मा को एकाग्र करके समाधि मे जाता है तो भगवान के दर्शन कर लेता है । लेकिन जब आत्मा परमात्मा के दर्शन करती है तो उस समय पर आत्मा की गति इतनी तीव्र होती है कि आत्मा के साथ बुद्धि का संपर्क नहीं रहता है । जब आप किसी चीज़ को देखते हो चक्षु इंद्री और बुद्धि के माध्यम से उसका वर्णन करते हो । बुद्धि ही किसी चीज़ की  व्याख्या करती है । जब कि बुद्धि ब्रहम लोक मे जा नहीं पाती है क्योकि बुद्धि की सीमा पार्थिव लोको तक सीमित … [ Read More ]

मानव क्यो नास्तिक होता है ? मनुष्य मे नास्तिकता और आस्तिकता का मूल कारण क्या है ? क्या कहता है वेद ज्ञान और प्रकृति का विज्ञान ?

यह एक स्वाभाविक क्रिया है कि मानव जाति मे दो मत और दो राय और दो विचार प्रत्येक कर्म और सिधान्त और विज्ञान मे  होते है । यह सत्य है कि मानव का ह्रदय और आत्मा नास्तिक नहीं होते है । प्रकृति के आवेशों मे आकर मन और बुद्धि नास्तिक हो जाते है । मन जब प्रकृति मे रमण करता है तो मन प्रकृति के भौतिकताबाद मे इतना लीन हो जाता है कि मन को यही लगता है कि प्रकृति का निर्माण स्वत प्रतिकृया से हुआ है , इसमे भगवान का कोई योगदान नहीं है । तथा मन परलोक का विचार ही छोड़ देता है । तथा मन अपने जीवन को प्रकृति के सिद्धांतों तक ही सीमित कर लेता है । जिसके कारण ह्रदय मे नास्तिकता आ जाती है । इसका दूसरा मुख्य कारण है कि  नास्तिक मानव के अंतकरण मे पिछले जन्म के कुछ दुराचारी संसकार संचित रहते है … [ Read More ]

क्या एक मनुष्य की आत्मा दूसरे मनुष्य के शरीर मे प्रवेश कर सकती है ? क्या है इसका वायो वैज्ञानिक रहश्य ?

यह सत्य है कि आत्मा म्रत्यु के बाद ही शरीर छोडती है । फिर आत्मा एक शरीर से दूसरे शरीर मे नहीं जा सकती है । लेकिन इसका एक बहुत बड़ा भी रहश्य है । कैसे एक मनुष्य दूसरे मनुष्य के शरीर मे होने वाली घटनाओ की जानकारी  प्राप्त कर सकता है तथा वो स्त्री के शरीर मे पुरुष की आवाज मे और पुरुष के शरीर मे स्त्री की आवाज मे कैसे बोल सकता है । तथा अपने अनुरूप कैसे दूसरे मनुष्य से काम करवा सकता है । इस सिधान्त को विज्ञान के आधुनिक युग मे Brain Hacking कहते है । जैसे कोई कम्प्युटर का हैकर दूसरे के कम्प्युटर को हेक कर लेता है । उसी प्रकार  5 प्राणो के संधान के नियम पर शरीर काम करता है । यह एक बहुत कठिन तपश्या है । जिसके द्वारा प्राणो का आपस मे समनव्य किया जाता है । जब कोई योगी … [ Read More ]

क्या दुआ और बददुआ का कोई असर होता है ? क्या है वायो वैज्ञानिक रहष्य ?

शरीर में जब मन और आत्मा का संधान होता है तो एक बहुत ही प्रभाव शाली उर्जा उत्पन्न होती है . यह उर्जा जिधर जाती है उधर या तो कल्याण करती है या तवाही करती है . इस उर्जा को हम प्राण शक्ति कहते है . आत्मा का वास नाभि केंद्र में होता है और मन का वास ह्रदय में होता है . जब मन और आत्मा का संधान खुसी के वशीभूत होकर नाभि से होता है तो वह उर्जा दुआ में बदल जाती है तथा जिस मनुष्य को दी जाती है उसका कल्याण होता है . इसी प्रकार जब मन और आत्मा का संधान दुखी रूप में होता है तो वही उर्जा नाग उप प्राण के कारण विष रूप धारण करके बददुआ में परिवर्तित हो जाती है . तथा बुरे करने वाले मनुष्य का विनाश कर देती है . यह मन और आत्मा के  संधान का योग अचानक ही … [ Read More ]

रत्नो और धातु का वैज्ञानिक रहष्य क्या है ?

कुछ लोग रत्नो को व्यर्थ की बाते बताते है कहते कि रत्नो का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है।  लेकिन रत्न जीवन में उसी प्रकार काम करता है जिस प्रकार एक बहु मंजिला ईमारत पर लगा एक अर्थ का एंटीना काम करता है ।  जब आसमान में विजली तड़कती है तो वो पानी के माध्यम से अर्थ लेकर ईमारत को तहश नहश कर देती है उस समय वो एंटीना ही ईमारत को सुरक्षित रखता है। इसी प्रकार जब हमारे शरीर में अग्नि तत्व का घर्षण होता है तो ये रत्न या धातु ही उसके प्रभाव से हमें बचाते है।  महर्षि चरक ने सबसे पहले आयर्वेद में इन रत्नो का प्रयोग भस्म बनाने के लिए किया था ।  आज भी मरीज़ को रत्नो और धातु की भष्म जैसे स्वर्ण भस्म ,चाँदी की भस्म, मूंगे की भष्म दी जाती है. रत्न उसी प्रकार काम करता है जिस प्रकार एक लेंस को सूर्य की … [ Read More ]

पवित्र अन्न क्या होता है ? गायत्री मंत्र से कैसे होता है पवित्र अन्न ? यह पोस्ट सिर्फ साधको के लिए है

जिस अन्न को ग्रहण करने से पवित्र विचार आते है , शरीर मे तामस वृत्ति की बृद्धि नहीं होती है , काम इंद्री मे वासना शांत हो जाती है वही है पवित्र अन्न , आंखे देखने मे दूषित नहीं होती है , मन शांति को ग्रहण करता है , सांस और चित राहत महसूस करते है , भोजन के बाद बेचैनी नहीं होती है , भोजन के बाद विष नहीं बढ़ता है , भोजन के बाद आलस नहीं आता है वही है पवित्र । जो अन्न पाप की कमाई का न हो , भोजन व्याज के कारोबार से कमाया धन न हो , रिश्वत का धन न हो , किसी के चोरी किए हुए धन का न हो । इसके अलावा जब भोजन ग्रहण करते है तो उससे पहले गायत्री मंत्र का जाप भोजन के उपर करते है तो अन्न पवित्र हो जाता है । भीष्म पितामह म्रत्यु शैया पर … [ Read More ]

छटे और आठवे महीने मे पैदा होने वाले बच्चे क्यो मर जाते है ? और सातवे महीने मे पैदा होने वाला बच्चा क्यो बच जाता है ? क्या है इसका वायो वैज्ञानिक रहश्य ?

माँ के गर्भ मे पल रहे बच्चे के 3 महीने बाद यानि चौथे महीने मे आत्मा का प्रवेश हो जाता है । तथा छटे महीने मे बच्चे का मन का प्रवेश हो जाता है । तथा 6 वे महीने मे ही मन और आत्मा का संबंध गर्भ मे होता है । जब यह मन और प्राण  का संबंध गर्भ मे होता है तो बच्चा गर्भ मे क्रीडा करने लगता है । घूमने लगता है । अगर किसी कारण बस माता  पिता उस समय संभोग कर लेते है या माता कोई शारीरिक परिश्रम कर लेती है तो बच्चे के जल की थेली मे जाने की संभावना हो जाती है जिसके कारण जल की थेली फट जाती है और बच्चे या माता की म्रत्यु की संभावना हो जाती है । इसलिए गर्भवती माता को 6 वे महीने मे बहुत सावधानी रखनी चाहिए । सातवे महीने मे मन प्राण आत्मा और चित का … [ Read More ]

तपस्विनी माता ही महापुरुष को जन्म देती है ।

जब माता देवकी राक्षस कंस के पापचार से बहुत दुखी हो गयी थी तो आठवे पुत्र के गर्भ मे होने पर देवकी ने जेल  मे बहुत तप किया जिसके कारण गर्भ मे ही भगवान कृष्ण मे वो संस्कार और शक्ति आ गयी थी । जिसका माता देवकी को चाहत थी । इसी प्रकार सुभद्रा के गर्भ के समय अभिमन्यु को चक्रव्यू मे प्रवेश की जानकारी हो गयी थी । लेकिन जैसे ही माता सुभद्रा निद्रा मे गयी तो बच्चे को निद्रा आ गयी । ब्रह्म ज्ञान कहता है कि गर्भावस्था के समय माँ जैसा खाती है , जैसा सोचती है जैसा पीती है उसका प्रभाव बच्चे के उपर पड़ता है । इसी प्रकार कोई माता गर्भावस्था के समय मांस खाती है तो उसके गर्भ मे दैत्य का जन्म होने की प्रवल संभावना होती है । अगर गर्भव्स्स्था के समय माता की इच्छा मांस खाने की है तो बच्चे मे यह … [ Read More ]