अब ये हमारे हिन्दू समाज के लिए दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है कि हिन्दू सम्प्रदाय के लोग भी पशुओं की बलि देने और उन्हें काटकर सरेआम बेचने पर आमादा हैं । अब क्या हिंदुओं के पास सिर्फ यही काम रह गया है कि वे मांस , मदिरा या अंडे जैसी बुरी चीजों को बेचकर और उन्हें खाकर अपना गुजारा कर रहे हैं । ये एक कटु सत्य है कि जो हिन्दू इन गन्दी चीजो का भक्षण कर रहे हैं उनमे नकारात्मक ऊर्जा का संचार स्वतः ही हो जाता है और उन्हें या उनके परिवार को भिन्न भिन्न परिस्थितियों का सामना करना ही पड़ता है । ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जिस भी वस्तु का आप भक्षण करते हैं वो किसी न किसी जीव से अवश्य जुड़ी होती है अब जब आप उसका सेवन करते हैं तो उस जीव की आत्मा आपको या आपके परिवार को किसी न किसी रूप … [ Read More ]
Category: Pt. Yatender Sharma
भगवान् के यहाँ सभी आत्मा एक जैसी है फिर आत्मा अलग अलग योनि में क्यों चली जाती है ?
एक बार वेद व्यास जी ने उपरोक्त प्रश्न पाराशर ऋषि से पूछा कि आत्मा के इतने रूप क्यो है ? एक आत्मा मृत लोक मे 84 लाख योनियो मे कष्ट भोगती है एक आत्मा देवलोक मे आनंद लेती है और कुछ आत्माये मोक्ष मे चली जाती है ।जो भगवान के आँगन मे रमण करती है । क्या कारण है ? पाराशर जी ने कहा प्रिय वेद व्यास जब मनुष्य इस लोक मे जन्म लेता है तो वह उत्तम कर्म करना चाहता है । लेकिन उसके संचित कर्मो के कारण वो उत्तम कर्म नहीं कर पाता है । जब वह मृत्यु को प्राप्त होता है तो आत्मा चाहती है कि उसको देवलोक प्राप्त हो जाये लेकिन पाप कर्मो के बोझ के कारण आत्मा अंतिरक्ष मे रमण करते करते उसको स्वत ही माँ के गर्भ मे अति शीघ्र जाने की इच्छा रहती है । उसको देवलोक जाने का समय ही नहीं मिल … [ Read More ]
भगवान् ने स्वार्थ क्यों बनाया ? क्या स्वार्थ पृथ्वी लोक पर गुरुत्वाकर्षण बल की तरह काम करता है ?
जी हाँ स्वार्थ एक गुरुत्वाकर्षण बल की तरह काम करता है । भगवान का इस प्रकृति के लिए सार्वभौमिक सत्य सिधान्त है कि जो जीव जिस तत्व मे पैदा होता है वो उसी मे मिल जाता है । प्रकृति मे पेड़ पोधा पैदा होते है उसी मे अपने जीवन के अंत मे सड़ गल कर उसी मे मिल जाते है । जो जल मे पैदा होता है वो उसी मे मिल जाता है । जो मिट्टी मे पैदा होता है वो मिट्टी मे मिल जाता है । आखिर यह सिधान्त कैसे काम करता है ? भौतिक विज्ञान के अणु सिधान्त के अनुसार प्रत्येक तारा और ग्रह और लोक एक दूसरे से गुरुत्वाकर्षण बल के द्वारा जुड़ा हुआ है । अगर गुरुत्वाकर्षण बल न होता तो यह ब्रहमाण न होता । ये ब्रहमाण मे ग्रह अपने अस्तत्व को बचाने के लिए एक स्वार्थ रूपी गुरुत्वाकर्षण बल का प्रयोग करते है । … [ Read More ]
आखिर भगवान् ने झूठ क्यों बनाई ? क्या है इसका वायो वैज्ञानिक रहस्य ?
भगवान का विज्ञान बहुत अद्भुत है । इसको जानना बहुत कठिन है । सारे संसार के सभी बिदवान झूठ न बोलने की सलाह देते है फिर वो स्वयं भी झूठ बोलते है । इसके बिना मनुष्य का गुजारा भी नहीं है । यह भोजन की भांति है जैसे बिना भोजन के जीवन नहीं चल सकता है वैसे झूठ के बिना जीवन नहीं चल सकता है । आखिर कैसे झूठ काम करता है ? मनुष्य के शरीर मे 5 उपप्राण होते है ये 5 उपप्राण स्वचालित क्रिया मे शरीर की रक्षा करते है । इनको कमांड देने की आवश्यकता नहीं होती है । ये स्वतः ही दुर्घटना होने पर अपने आप शरीर को बचाते है । जब शरीर पर कोई अचानक आपदा आती है तो ये अपना काम शुरू कर देते है । जिसमे नाग प्राण क्रोध उत्पन्न करता है । देवव्रत उपप्राण व्यान प्राण के साथ गालियां और झूठ उत्पन्न … [ Read More ]
मनुष्य पाप क्यों करता है ? क्या है इसका वायोवैज्ञानि कारण ? ?
सबसे पहले हमे पाप को समझना चाहिए कि पाप क्या है ? मन और इंद्रियों की खुशी के लिए किया गया कर्म पाप के दायरे मे आता है । और आत्मा की खुशी के लिए किया गया कर्म पुण्य के दायरे मे आता है । मन प्रकृति का रूप है और आत्मा परमात्मा का रूप है । मन का संबंध चित के साथ होता है । और चित मे पूर्व जन्मो के पाप और पुण्य संचित होते है । जब मनुष्य इस स्थूल रूपी शरीर को प्राप्त करता है तो चित मे संचित पाप मन के साथ संबंध स्थापित कर लेते है । इसलिए मनुष्य का ध्यान हमेशा पापो पर चला जाता है । और उसको पाप करने मे आनंद की अनुभूति होती है । इसलिए जब मनुष्य इस लोक मे कर्म करता है तो मन को हमेशा संचित पाप प्रभावित करता है । और मानव के मन मे लगातार … [ Read More ]
भगवान का विशेष कार्य क्या है ?
भगवान के मुख्यत 4 काम है । 1- सृष्टि की रचना करना 2- सृष्टि का प्रलय करना 3- जीव आत्माओं को पाप पुण्य का फल देना 4- संसार का पालन करना । 1- भगवान सृष्टि की रचना क्यो करता है ? आप कल्पना करे कि यह संसार न होता तो क्या होता ? सब कुछ शून्य होता । और शून्य मे कोई भी जीव आत्मा परमात्मा निवास नहीं कर सकता है । इसलिए भगवान ने अपने ज्ञान और प्रयत्न के सहारे इस सृष्टि की रचना की है ताकि वो इस सृष्टि का आनंद ले सके । यही विचार 84 लाख योनियो मे भगवान ने नियुक कर दिया । जैसे माता बच्चा पैदा करती है और उसका आनंद लेती है तथा गलती पर सजा भी देती है । 2- सृष्टि का प्रलय क्यो करता है भगवान ? जब कोई भी चीज़ बहुत लंबे समय तक चलायमान रहती है तो उसका ह्रास … [ Read More ]
क्या साधना से शारीर के दोषों की शान्ति हो जाती है ?
यह सत्य है कि साधना करने से शरीर के विकार दूर हो जाते है । मनुष्य मे विकार उसके पैदा होने के साथ ही चित मे आ जाते है । जो विकार चित मे संचित होते है वो पूर्व जन्म के कर्मों के कारण होते है । अब साधना से मन को मूलाधार चक्र से लेकर ब्रह्मरंध्र तक तथा ब्रह्मरंध्र से लेकर मूलाधार तक बार बार संचार किया जाये तो चित मे मौजूद विकार समाप्त होने शुरू हो जाते है । यह अभ्यास पहले 10 मिनट से प्रारम्भ करना चाहिए तथा धीरे धीरे इस अभ्यास को 1 घंटे तक ले जा सकते है । ये विकार उसी प्रकार समाप्त हो जाते है जैसे अन्न को पकाने से अन्न अपनी उगने की क्षमता खो देता है इसी प्रकार जब मन साधना से चित मे संचित विकारो को तपा देता है या पका देता है तो विकार शरीर मे उत्पन्न होनी की … [ Read More ]
क्या कोई गुरु आत्मा से बात कर सकता है या है पाखण्ड? क्या इसका वायोवैज्ञानिक आधार ?
आत्मा का आकार इतना सूक्ष्म होता है कि उससे बात करने बात तो दूर की है उसको किसी भी बारीक से बारीक दूरबीनों से देखा नहीं जा सकता है । आत्मा का आकार एक बाल के गोल अग्र भाग के 60 हिस्से कर दिये जाये तथा 60 वे हिस्से के एक भाग के 99 हिस्से कर दिये जाये तथा 99 वे हिस्से के एक भाग के फिर 60 हिस्से कर दिये जाये तथा 60 वे भाग के 99 हिस्से कर दिये जाये तो 99 वे भाग मे से एक हिस्से के बराबर आत्मा का सूक्ष्म आकार होता है । यानि 1 बाल के गोल हिस्से का 3 करोड़ 52 लाख 83 हजार 600 वा हिस्सा । अब कल्पना करे आत्मा इतनी सूक्ष्म है कि उससे शरीर का कोई भी तत्व और इंद्री बात करने मे सक्षम नहीं है । एक आत्मा किसी दूसरी आत्मा से तभी बात कर सकती है … [ Read More ]
क्या शुभ कर्म और अशुभ कर्म कहीं संचित होते हैं ? क्या है इसका वैज्ञानिक रहस्य ? क्या दीवारों के भी कान होते हैं ?
चुप चाप चोरी करते है यह सोचकर कि किसी ने नहीं देखा है हम किसी की हत्या करते है यह सोचकर किसी नहीं देखा है ,हम झूठ बोलते है, हम चुप चाप रिश्वत लेते है , हम बंद कमरे में किसी का बुरा सोचते है, हम किसी के प्रति बुरी नज़र रखते है, हम किसी से ईर्षा बहुत करते है, हम भगवान के मंदिर से चोरी करते है या हम भगवान् को गाली देते है.या आप बंद कमरे में किसी का भला सोचते है ,आत्मा से दिल से किसी की सहायता करते है, या आप किसी गरीब की धन से मदद करते है,या आप किसी की जान बचाते है, या आप किसी को ज्ञान बांटते है,या आप आत्मा से मन से शरीर से समाज का कल्याण करते है. तो क्या ये सभी अशुभ कर्म व शुभ कर्म कही पर संचित होते है? अज्ञानी तो यही सोचता है कि मुझे किसी … [ Read More ]
बुरे और अच्छे कर्म को कैसे पहचाने ?
बुरे और अच्छे कर्म को पहचानना न तो किसी संत के बस की बात है न किसी ज्ञानी के बस की बात है । और साधारण इंसान तो इसको जानता ही नहीं है । हर संत महात्मा ,ज्ञानी और साधारण मनुष्य अपने निहित स्वार्थ के लिए बुरे कर्म को ही अपनी इच्छा अनुसार अच्छा बना लेता है । जिस प्रकार कर्ण ,गुरु द्रोणाचर्य और कृपाचार्य ने अपने बुरे कर्म को और दुर्योधन के नमक के बदले अच्छे कर्म मे बदलने की कोशिस की । बुरे कर्म वो कर्म होते है जिनको करने बाद भय लगता है और रात को नीद नहीं आती है । उन कर्मो को करने के बाद आपको नकली आनंद की अनुभूति तो होती है । और अच्छे कर्म वो होते है जिनको करने बाद आपको न तो भय लगता है और रात को चेन और आनंद की नीद आती है । बुरे और अच्छे कर्मो का … [ Read More ]