किसके पैर छुएँ और किसके न छुएँ ? क्या है इसका वायोवैज्ञानिक आधार ?

हिन्दू संस्कृति में पैर छूना एक संस्कार माना जाता है । हम अपने से बड़ो के , माता पिता , और गुरु के पैर छूते है । लेकिन आजकल पैर छूना चमचागिरी का संस्कार बन गया है ।

पैर छूने का वैज्ञानिक आधार

हमारे शरीर के दो ध्रुव उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव होते है । सिर उत्तरी ध्रुव और पैर दक्षिणी ध्रुव होता है । अगर हम किसी के पैर छूते है तो हमारा उत्तरी ध्रुव बड़े आदमी के दक्षिणी ध्रुव से मिल जाता है । ऐसी स्थिति में बड़े आदमी के संस्कार स्वतः चुम्बकीय आधार पर हमारे चित में प्रवेश कर जाते है ।

इसी सिद्धान्त पर हम जिस माँ के हम पैर छूते है उनके चित के संस्कार हमारे अंदर आ जाते है । अगर माँ देवी कौशल्या जैसी है तो अवश्य ही अच्छे संस्कार आएंगे ।

अगर माँ मांसाहारी है , शरावी है या जुआरी है और उसके पैर छूते है और जीवन में 1000 बकरे और 5000 मुर्गे खा चुकी हो तो उसके मांसाहारी संस्कार भी हमारे अंदर आ जाएंगे ।

हमारी हिन्दू संस्कृति के संस्कार कहते है सदाचारी माता पिता , ज्ञानी और उच्च कोटि के गुरु के ही पैर छूने चाहिए । भक्त प्रह्लाद ने अपने पिता हिरण्यकश्यप के और योगी राज नचिकेता ने अपने पिता वाजश्रवा के और दानवीर कर्ण ने अपनी माता कुंती के कभी पैर नही छुए थे ।

अगर आप मांसाहारी के पैर छुओगे तो निश्चित तौर पर आपके संस्कार अपवित्र हो जाएंगे । दुराचारी के यहाँ भोजन करने से संस्कार पापी हो जाते है । भीष्मपितामह , कृपाचार्य , कर्ण और द्रोणाचार्य के संस्कार पापी दुर्योधन के अन्न से दूषित हो गए थे ।
और भगवान् राम ने अपने मित्र निषादराज के यहाँ का भी भोजन ग्रहण नहीं किया था । ये होते है हमारे संस्कार जिन पर हमारी संस्कृति टिकी है ।

पं. यतेंद शर्मा ( वैदिक दार्शनिक एवं चिंतक )

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