नास्तिक लोग , अधर्मी और वैज्ञानिक इन व्रतो को नहीं मानते है । उनका मानना है कि भूखे रहने से भगवान खुश नहीं होते है । यह बात सत्य कि भूखे रहने से भगवान प्रसन्न नहीं होते है लेकिन स्वास्थ्य के लिए यह व्रत रामवाण होता है । किसी भी व्रत का हिन्दू सनातन धर्म मे वैज्ञानिक रहश्य होता है ।
एकादशी को सूर्य एक महिना छोड़ कर हर दूसरे महीने अपने नक्षत्रो कृतिका , उत्तरा फाल्गुनी और उत्तराषड़ नक्षत्र से भ्रमण करता है । जब सूर्य अपने नक्षत्रो से भ्रमण करता है तो पृथ्वीलोक पर अपनी किरणों से विष फेंकता है । जिसके कारण भोजन मे विष बन जाता है क्योकि अन्न सूर्य की किरणों से ही उत्पन्न होता है । अन्न मे स्थूलरूप सूर्य के कारण ही आता है । लेकिन यह विष प्रकृति की बहुत सी जड़ी बूटियों मे चला जाता है जो बीमारी ठीक करने मे काम आती है ।
इसलिए एकादशी का व्रत करने से स्वास्थ ठीक रहता है तथा इंद्रियाँ भी स्वस्थ रहती है । कितनी बार आपने देखा होगा कि रोजाना जिस भोजन को आप खाते हो उसी भोजन से एक दिन आपको गेस बन जाती है अफरा बन जाता है तथा पेट मे अंदर भोजन का विष बन जाता है । जिसको फूड पोजनिंग कहते है । जब डॉ के पास जाते हो तो डॉ पूछता है कि क्या खाया था ? तो आप बताते हो कि डॉ साहब जो रोज़ खाता हूँ वही खाया था । फिर यह बीमारी क्यो हुई ? यह बीमारी एकादशी को खाने के कारण विष मे बदल गयी थी ।
इसी प्रकार चौथ को चंद्रमाँ नहीं देखना चाहिए । चौथी तिथि के उत्तार्ध मे विष्टि नाम का करण होता है जिसको हम भद्रा भी कहते है । ज्योतिष मे 11 करणो का विवरण होता है । जब चंद्रमाँ विष्टि नाम के करण से भ्रमण करता है तो पृथ्वी पर विष फेंकता है । अगर उस समय चंद्र दर्शन किए जाते है तो शरीर व्यादिग्रस्त हो जाता है । हमारा शरीर चंद्र विष को ग्रहण कर लेता है लेकिन यह विष प्रकृति की बहुत सी जड़ी बूटियो मे चला जाता है जिसके कारण आयुर्वेद की दवाई का निर्माण होता है ।
इसलिए सनातन हिन्दू धर्म को अपनाए और जीवन सफल बनाए ।
पं. यतेन्द्र शर्मा (ज्योतिषविद् एवं सनातन दार्शनिक )