धर्म का मामला बहुत ही संबेदनशील है । इस विषय पर लिखना थोड़ा कठिन कार्य है । क्योकि कि यह भावना से जुड़ा होता है अगर भावना आहत हुई तो धर्म का अधर्म हो जाएगा और इस विषय पर लिखने वाला को अभद्रता का सामना करना पड़ेगा । पैदा होती हमे धर्म के बारे मे सही जानकारी न देकर धर्म की कट्टरता सिखाई जाती है । कि हम हिन्दू है , मुसलमान है , इशाई है , सिक्ख है , जैन है या बोद्ध है । और यह कट्टरता हमारे मन मे और बुद्धि मे कूट कूट कर भर दी जाती है । कि अगर कोई हमारे धर्म के खिलाफ बोलेगा या लिखेगा तो हम उसको मार देंगे काट देंगे या उपद्रव कर देंगे । और इन धर्मों के ठेकेदार संत ,महात्मा ,मोलवी ,पादरी ,भिक्षू या ग्रंथि सभी एक दूसरे धर्म की बुराई करते है । और सभी अपने धर्म रूपी संगठन को श्रेष्ठ बताते है ।
धर्म एक भगवान के प्रति ध्यान ,धारणा और भावना है । जो कि भगवान के साथ उसी प्रकार जुड़ी रहती है । जिस प्रकार एक माँ का दूध पीने वाले बच्चे का ध्यान , धारणा और भावना माँ के साथ जुड़ा रहता है । तथा माँ का ध्यान धारणा और भावना बच्चे के साथ जुड़ी रहती है । जब माँ और बच्चे दोनों की ध्यान ,धारणा और भावना एक साथ जुड़ती है तो ही माँ के स्तनो मे दूध आता है । तथा बच्चा दूध पीता है । इसी प्रकार जब आप ध्यान ,धारणा और भावना से जुड़ कर भगवान का कार्य करते हो तो वही धर्म है । इसका उल्टा करने पर अधर्म हो जाता है । धर्म और अधर्म ये दो शब्द श्रष्टि के प्रारम्भ काल से ही कर्म के अधीन काम करते है ।
अगर आप अच्छे कर्म करते हो तो वो कर्म आपके धर्म के खाते मे जुड़ जाता है । और बुरे कर्म करते हो तो आपके अधर्म के खाते मे जुड़ जाता है । यह विधान शुरू से आज तक चल रहा है । लेकिन आजकल धर्म के ठेकेदारों ने इसकी परिभाषा ही बदल डाली है। धर्म शब्द आजकल लाखो लोगों के संगठन का नाम हो गया है। लेकिन उस संगठन मे धर्म नाम की कोई चीज़ है ही नहीं है । मुसलमान नाम का धर्म है उसमे धर्म कहा है ? उसमे तो एक आदमी 4 औरत रख सकता है, जीव हत्या कर सकते है ,आतंकबाद कर सकते है , गौ हत्या कर सकते है और मांस मदिरा का सेवन कर सकते है । अल्ला की बनाई हुई हर चीज़ का नाश कर सकते हो । यह धर्म नहीं हो सकता है यह एक क्रूर संगठन है जो अल्ला के नाम पर चल रहा है ।
ऐसे ही हिन्दू धर्म भी एक संगठन है । हिन्दू धर्म मे जिन संतो पर आप विश्वास करते है वही आपको बलात्कार का शिकार बना लेते है । लोग मंदिरों मे से चोरी करते है , शराब पीते है , मांस भक्षण करते है धर्म के नाम पर सारे गुरु और महात्मा लोगो को ठग रहे है । अपने बड़े बड़े महल नुमा आश्रम बना रहे है । उन आश्रमों से हवाला के कारोवार हो रहे। क्या यही धर्म है ? इसी प्रकार जैन मुनि भी सुबह से शाम तक हिन्दू देवी देवताओं को कोशते रहते है कि इनकी पूजा न करो । यह कोई धर्म नहीं है यह तो बुराई करने वाले नंगे लोगों का संगठन है जो महावीर के नाम पर चल रहा है ।
इसी प्रकार ईशाई भी लालच देकर भोले भाले लोगों को अपने संगठन से जोड़ रहे है । इस संसार मे जितनी भी बुराई की उत्पत्ति हुई है वो सब ईशाई की दैन है । चाहे इस दुनिया मे नंगी फिल्मों का मामला हो या नंगापन का मामला हो या आतंकबाद या शराब या सिगरेट या पादरियों का दुष्कर्म हो। ये सभी तो भगवान के नाम पर चलने वाले व्यभचारी संगठन है । इन धर्मों की आड़ मे सभी बुरे से बुरे अधर्म होते है ।
पैदा होने बाद हमारे सच्चे धर्म क्या है ? जब हम इस प्रकृति की गोद मे बड़े हो जाते है तो हमारा पहला धर्म है कि जिन माँ बाप ने आपको जन्म दिया उनको तकलीफ ने दे और उनकी सेवा करे । तथा जिस गौमाता का आपने दूध पिया उसकी भी सेवा करे । दूसरा धर्म है कि जिस गुरु ने आपको शिक्षा दी है उनकी सेवा करे उनका आदर करे । तीसरा धर्म है जिस भगवान ने आपको यहा भेजा है उनकी बनाई हुई किसी भी चीज़ को नष्ट न करे । जैसे पानी को दूषित न करे ,प्रथ्वी को दूषित न करे, हवा को दूषित न करे और बनस्पति पेड़ पोधो व जीवों को नष्ट न करे ।
और जिस देश मे आप रहते हो उस देश की रक्षा करे । ये हमारे सार्वभौमिक धर्म है । इसके अलावा पति का पत्नी के प्रति धर्म है, उसको कोई तकलीफ न हो । पत्नी का पति के प्रति धर्म है । भाई का बहिन के प्रति धर्म है । ज्ञानी का ज्ञान के प्रति धर्म है । भगवान के उस ज्ञान से लोगों को ठगना घोर अधर्म है । डोक्टर का मरीज के प्रति धर्म है । पुत्र का पिता के प्रति और पिता का पुत्र के प्रति धर्म है । इसके अलावा भगवान की इस सुंदर रचना की सुरक्षा करना तथा इसकी देखभाल करना आपका परम धर्म है ।
जब हम अपने धर्मो को नहीं निभाते है या इसके विपरीत बुरे कर्म करते है तो हमारे कर्म ही अधर्म के खाते मे चले जाते है । और वही अधर्म हो जाता है । इसलिए ध्यान धारणा और भावना से भगवान की इस सुंदर रचना के लिए किया हुआ प्रय्तेक कर्म ही धर्म होता है ।
पं. यतेन्द्र शर्मा ( कुंडली एवं वास्तु विशेष्ाज्ञ )
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