क्या एक मनुष्य की आत्मा दूसरे मनुष्य के शरीर मे प्रवेश कर सकती है ? क्या है इसका वायो वैज्ञानिक रहश्य ?

यह सत्य है कि आत्मा म्रत्यु के बाद ही शरीर छोडती है । फिर आत्मा एक शरीर से दूसरे शरीर मे नहीं जा सकती है । लेकिन इसका एक बहुत बड़ा भी रहश्य है । कैसे एक मनुष्य दूसरे मनुष्य के शरीर मे होने वाली घटनाओ की जानकारी  प्राप्त कर सकता है तथा वो स्त्री के शरीर मे पुरुष की आवाज मे और पुरुष के शरीर मे स्त्री की आवाज मे कैसे बोल सकता है । तथा अपने अनुरूप कैसे दूसरे मनुष्य से काम करवा सकता है ।

इस सिधान्त को विज्ञान के आधुनिक युग मे Brain Hacking कहते है । जैसे कोई कम्प्युटर का हैकर दूसरे के कम्प्युटर को हेक कर लेता है । उसी प्रकार  5 प्राणो के संधान के नियम पर शरीर काम करता है । यह एक बहुत कठिन तपश्या है । जिसके द्वारा प्राणो का आपस मे समनव्य किया जाता है ।

जब कोई योगी प्राण को अपान मे संधान का लेता है तो नाभि केंद्र एक ऊर्जा उत्पन्न होती है वह ऊर्जा धुलोक मे आ सकती है और जा सकती है । जब प्राण और अपान प्राण का संधान समान प्राण के साथ होता हुआ व्यान प्राण के साथ संबंध बनाता हुआ उदान प्राण  के साथ संधान करता है तो मानव का मस्तिक का संबंध ब्रहमाण्ड मे प्राण के परमाणुओ से संबंध हो जाता है । व्यान प्राण के माध्यम से आप किसी प्राणी के प्राण से संपर्क कर सकते है । आपके 5 प्राणो का कब्जा किसी भी प्राणी के प्राणो पर हो जाता है । और प्राण ही शरीर को चलते है । इसलिए आत्मा नही प्राण प्रवेश करते है ।

जब 5 प्राणो का संबंध धुलोक से हो जाता है तो प्राण किसी भी जीव के प्राण से संपर्क कर सकते है । वो आपके प्राण एक शेर के शरीर से भी संपर्क कर सकते है और आप जैसी आज्ञा शेर हाथी या साँप को या मानव को देंगे तो वो वही काम करेगा जो आप चाहते है । आपके 5 प्राण संधान करके किसी भी प्राणी के शरीर मे प्रवेश करके उस शरीर मे होने वाली घटनाओ की जानकारी प्राप्त कर सकते है । या आप अपने अनुरूप कार्य करवा सकते है ।

जैसे आदि शंकराचार्य  ने मृत राजकुमार के शरीर मे प्रवेश किया था  , मारीच ने मृग के शरीर मे प्रवेश किया था , भगवान शिव ने महाभारत के समय सूअर के शरीर मे प्रवेश किया था तथा स्वयं किंदम ऋषि और उनकी पत्नी ने शेर के रूप मे प्रवेश करके संभोग किया था तथा पांडु के द्वारा उनकी हत्या हुई थी ।
सनातन धर्म का ज्ञान असीमित है ।

पं. यतेन्द्र शर्मा  ( कुंडली एवं वास्तु विसेसग्य )