जब माँ बच्चे को दूध पिलाती है तो मन के द्वारा माँ का प्रेम जाग्रत होता है । वह माँ का प्रेम दूध मे समान प्राण के द्वारा मिश्रित होकर स्तन मे आ जाता है । उदान नाम का प्राण माँ के स्तन मे दूध का निर्माण करता है । यह प्राण माँ के चित मे रहता है । अगर माँ उस समय उच्च विचार सोचती है तथा महान विचार सोचती है तो दुध के माध्यम से वो विचार बच्चे के शरीर मे आ जाते है । वो विचार शरीर से मन मे जाते है मन से बुद्धि मे जाते है और बुद्धि से चित मे जाते है और चित से आत्मा और 5 प्राणो मे संचित हो जाते है । जिससे बच्चे का आत्म बल , मनोबल और बुद्धिबल बढ़ जाता है ।
इसी प्रकार जब बच्चे को बोतल से दूध पिलाया जाता है तो उस दूध मे माँ के स्तन का प्यार और ममता और ज्ञान नहीं आता है । जिसके कारण बच्चा अपना पेट तो भर लेता है लेकिन जो माँ का बात्सल्य बच्चे मे आना चाहिए वो नहीं आता है । और धीरे धीरे बच्चे का लगाव माँ बाप से हट जाता है । इसलिए बच्चे की शिशु अवस्था काल तक बच्चे को स्तन से दूध पिलाना चाहिए ।
अगर माँ ऐसा करती है तो बच्चे मे माता पिता के संस्कार आ जाते है । तथा बच्चे की रोग से लड़ने की क्षमता बढ़ जाती है । जो माँ अपने सौंदर्य के लिए स्तन से दूध नहीं पिलाती है उनके बच्चे माता पिता से कोई लगाव नहीं रखते है तथा रोग रोधक क्षमता नहीं होती है और लगातार बीमार बने रहते है ।
पं. यतेन्द्र शर्मा ( वैदिक & सनातन चिंतक )