अन्न से मन , जल से प्राण और घी से तेज़ बनता है नशे से बनता है शरीर मे जहर । इन चारो का तीन जगह विभाजन होता है ।

जैसा अन्न हम खाते है वैसा ही अन्न तीन भागो मे बट जाता है । अन्न का एक भाग स्थूल मे मल बन जाता है मध्यम भाग मे मांस मे बृद्धि करता है और तीसरा सूक्ष्म भाग मे मन का निर्माण करता है । आप जैसा अन्न खाओगे उसका तीसरे  भाग का प्रभाव मन को वैसा ही बनाता है ।

जल पीने से स्थूल भाग मे मूत्र बन जाता है , मध्यम भाग मे खून का निर्माण होता है तथा सूक्ष्म भाग मे प्राण का निर्माण होता है । प्राण अपनी गति करता है ।

घी खाने से स्थूल भाग मे हड्डी का निर्माण होता है मध्यम भाग मे मज्जा का निर्माण होता है और सूक्ष्म भाग मे वाणी का निर्माण होता है ।

इसी प्रकार नशा करने से स्थूल भाग मे मूत्र विकार का निर्माण करता है मध्यम भाग मे शरीर के सभी अंगो मे  विष का निर्माण करता है और सूक्ष्म भाग मे बुद्धि की गति को बूढ़ा बना देता है ।

पं. यतेन्द्र शर्मा ( वैदिक & सनातन चिंतक )