ग्रहों और रत्नों के बीच क्या संबंध होता है ?

lucky_stone_page

ग्रह और रत्नों का आपस में बहुत ही गहरा संबंध है। सौर मण्डल में स्थित सभी ग्रह नक्षत्र व तारे अपनी रश्मियाँ (उर्जा किरण) भूमण्डल पर फैलाते हैं जिनका प्रभाव इस भूमंडल के प्रत्येक प्राणियों, वनस्पतियों व खनिजों पर पड़ता है और ये सभी प्राणियों, वनस्पतियों, व खनिजों के जीवन तथा क्रिया कर्म को अपनी रश्मि के द्वारा प्रभावित करते हुए संचालित करते है।

ग्रहों से निकलने वाली ये रश्मियाँ देखने में भले ही सफेद रंग की प्रतीत हो परंतु वास्तव में सात रंगों से युक्त होती है। ये किरण सफेद रंग में न होकर सात रंगों – बैंगनी, आसमानी, पीला, लाल, नीला, हरा तथा नारंगी रंगों का सममिश्रण होता है। इसकी स्पष्ट झलक वर्षा ऋतु में ‘ इंद्र धनुष ‘ के रूप में दिखाई देती है।

सूर्य की किरण जब वर्षा के मध्य में जल बिंदुओं से होकर पृथ्वी पर आती है तो सात रंग में विभक्त होकर ये किरणें इंद्र धनुष का रमणीक व मनोहारी दृश्य उपस्थित करती है।

ग्रह और रत्नों में अभूतपूर्व दैवी शक्ति निहित होती है। रत्नों का हमारे उपर जो प्रभाव होता है वह ग्रहों के रंग व प्रकाश के किरण की कंपन्न की क्षमता के कारण है। हमारे ऋषि मुनियों ने अपने अनुभव, प्रयोग और दिव्य द्रष्टि से यह ज्ञान प्राप्त किया कि कौन – सा ग्रह किस रंग की किरणे प्रदान करता है और उसी के अनुसार उन्होंने ग्रहों के लिए रत्न निर्धारित कर दिए।

रत्नों का हमारे जीवन और शारीर में प्रभाव
जैसे ग्रहों का हमारे जीवन में प्रभाव होता है ठीक वैसे ही रत्नों का भी हमारे जीवन, शरीर, परिवार आदि पर प्रभाव पड़ता है। किसी रंग की कमी के कारण हमारे शारीर में रोग, आदि – व्याधि उत्पन्न होती है उसी को पूरा करने के लिए उस ग्रह से संबंधित हमे रत्न धारण करना चाहिए। इसके लिए हमे ज्योतिष के गहन अध्ययन के साथ साथ कुण्डली में सूक्ष्म से सूक्ष्म ग्रहों के हमारे जीवन में पड़ने वाले प्रभावों की भी जानकारी होनी चाहिए।

कौन – सा रत्न कब धारण करना चाहिए? कब लाभदायकऔर कब हानिकारक होगा, इसके संबंध में ज्योतिष में काफी मतभेद है। कुछ विद्वानों के मतानुसार जो ग्रह अपनी महादशा अन्तर्दशा में है उसी ग्रह का नग धारण करना चाहिए। लेकिन कुछ विद्वानों के मतानुसार कुण्डली में जो ग्रह शुभ स्थानों का स्वामी होता है और शुभ फलदायक होता है, उसी ग्रह को मजबूत करना चाहिए।

परंतु प्रकृति के अनुसार हमे जो विचार दिया गया है वह इस प्रकार है की अगर कोई ग्रह हमारा बुरा करता है या हम मान सकते है की यदि कोई भी व्यक्ति हमारा बुरा करता है तो उसे नग पहनाकर बलवान नही कर सकते क्योंकि बलवान होकर ग्रह हमे और भी बुरा फल देने की कोशिश करेगा। इसलिए बलवान ग्रह की पूजा ही करनी चाहिए।

हमे कुण्डली में यह विशलेषण अवश्य कर लेना चाहिए कि हमारे लिए जो ग्रह शुभफलदायक है उसकी महादशा- अन्तर्दशा में नग पहनने से ज्यादा लाभ मिलेगा। अशुभ ग्रहों के रत्न धारण करने की सलाह कभी नही देनी चाहिए, जो अपनी महादशा – अन्तर्दशा में बुरा फल करते है। अशुभ ग्रहों से हमारा तात्पर्य नैसर्गिक पापी ग्रहों – सूर्य, मंगल, शनि, राहु व केतु से और 3, 6, 8, एवं 12 भाव के स्वामी ग्रह की महादशा – अन्तर्दशा में नुकसानदायक प्रभाव से है, इसलिए हमे इनकी पूजा – अर्चना, दान – धर्म, जाप आदि करना चाहिए।

कैसे करे रत्न धारण?
किसी भी शुभ ग्रह अथवा कमजोर ग्रह के रत्न को धारण करने के लिए विद्वान – ब्राह्मण या आचार्य द्वारा रत्नों से संबंधित ग्रह का मंत्रो द्वारा जाप, पूजन करवाना चाहिए ताकि उस रत्न की प्राण – प्रतिष्ठा की जा सके क्योंकि प्राण – प्रतिष्ठा के बाद ही वह रत्न काम करना शुरू कर देता है । इसके बाद यज्ञादि करने के बाद नग – धारण करना चाहिए।

जैसे हमारा शरीर भी प्राण – शक्ति द्वारा संचालित है तभी यह शरीर सभी प्रकार के कार्य करने में सक्षम है उसी प्रकार रत्न भी मन्त्रो से अभिमंत्रित होने पर प्राण – शक्ति जागृत कर लेते है और उसी अनुसार ये अपना कार्य करते है।

जिस रंग की हमारे शरीर में कमी होती है, वे उसे दूर करते हुए रंगों को बढ़ाकर हमारे शरीर को स्वस्थ बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।

कुण्डली में ग्रहों की जानकारी और रत्नों के धारण संबंधी विषय में आप पं. यतेन्द्र शर्मा जी से संपर्क कर सकते है।