ग्रहों का स्वभाव व दृष्टि

सूर्य

आकाश मंडल का मुख्य केंद्र, सभी ग्रह इसी के प्रकाश से प्रकाशमय होते है। सबसे ज्यादा बलवान और पराक्रमी ग्रह।

कारक : आत्मा. पिता, नेत्र, पराक्रम, तेज़, माणिक्य, राजा, शासनादी, हड्डीयों, पेट एवं हृदय। कुंडली में १, ९, १० भाव का कारक।

विचार : शारीरिक गठन, शक्ति, पिता, वैध, उच्च वर्ग, प्रतिष्ठा, ग्रीष्म ऋतु, सोना, तांबा, शरीर का सुख। पित प्रकृति, सतोगुण,अग्नि – तत्व, पुरुष जाति, पूर्व दिशा का स्वामी, दिन में बली। मेष राशि में १० अंश उच्च एवं तुला राशि में १० अंश नीच।

रत्न : प्रिय रत्न माणिक्य, क्षत्रिय जाति का ग्रह। सूर्य से पृथ्वी की दुरी लगभग १५ करोड़ कि.मी. व्यास लगभग १४ लाख कि.मी. १३ लाख गुणा बड़ा ग्रह पृथ्वी से।

रोग : रक्त, पित विकार, सिर दर्द, नेत्र रोग, ज्वर, ह्रदय रोग, अतिसार, पेट की बीमारी व हड्डियों का रोग, व्याकुलता ।

चंद्रमा

मन के उपर प्रभाव, कुण्डली में चंद्रमा खराब होने पर मन और पाँचो इन्द्रियों पर प्रभाव। सूर्य से प्रकाश मिलने पर ही चमकता है, पूर्ण रूपसे पृथ्वी पर प्रभाव। तीव्र गति से घुमने वाला ग्रह ।सवा दो दिन एक राशी में भ्रमण , मन की संकल्प शक्ति चंद्रमा से प्रभावित।

कारक : मन, बुद्धि, माता, धन, खूबसूरती, चावल, सफेद रंगो की वस्तुएँ, चतुर्थ भाव का कारक, शिशु का कारक।

विचार : वृष राशी में उच्च, वृश्चिक राशी में नीच । गोल आकृति, वात, कफ और चंचल प्रकृति वाला ग्रह। जलीय तत्व, वैश्य जाती, मधुर वाणी, वायव्य दिशा का स्वामी, स्त्री ग्रह , रात में बली, वर्षा ऋतु का प्रतिनीधि। पूर्ण चंद्रमा शुभ एवं क्षीण चंद्रमा अशुभ। धातु चाँदी रत्न मोती।

रोग : आँखों की बीमारी, कैल्शियम की कमी, मिरगी के दौरे, कफ संबंधित रोग, गला, छाती, मानसिक रोग, स्त्री संबंधित रोग, आलस।

मंगल

क्रोधी स्वभाव, लाल रंग, धैर्य एवं पराक्रम का प्रतीक, पुरुष जाति, दक्षिण दिशा में बलवान, अग्नि तत्व. पित्र प्रकृति, तमोगुणी, युवावस्था, उग्र स्वभाव, क्षत्रिय जाति, रात्री में बली, क्रूर ग्रह। दूरी लगभग ५ करोड़ ४२ लाख ६५ हजार ६०० कि.मी. पृथ्वी से २४ घंटे ३७ मि. २३ से. में अपनी दुरी पर भ्रमण। सूर्य की परिक्रमा ६८७ दिनों में करता है। मेष, वृश्चिक राशियों का स्वामी।

विचार : मकर राशी में २८ अंश पर उच्च तथा कर्क राशी में २८ अंश पर नीचे। दशम भाव में दिशाबल प्राप्त होता है एक राशी में ४५ दिन भ्रमण करता है प्रिय रत्न मूंगा, धातु सोना, सेनापति ग्रह भी बोला जाता है ।

रोग : पित्र विकार, साहस में कमी, गर्मी, रक्तचाप, पित्र, जलन, रक्त, कुष्ट रोग, गुप्तांगो में तकलीफ, गुर्दा, मसपेशियाँ, पेट से पीठ तक कमजोरी, बुखार, चोट लगना, जलना, चेचक, खसरा, संक्रमक व प्लेग।

कारक : छोटे भाई – बहिन, भूमि, सेना, शत्रु, क्रोध, ऑपरेशन, पुत्र-संतान, तांबा एवं सोना। ३, ६ एवं १० भावो का कारक।

बुध

राजकुमार का प्रतीक, चंचल प्रवति, ९ करोड़ ८८ लाख कि.मी. पृथ्वी से दुरी, ८८ दिन में सूर्य के चारो ओर एक चक्कर पूरा करता है, सूर्य के एक राशी आगे – पीछे रहता है, तीव्र गति का होने की वजह से कभी पूरब तथा कभी पश्चिम में उदय, सूर्योदय से दो घंटे पहले तथा सूर्यास्त के दो घंटे बाद दिखाई देता है।

विचार : पापी ग्रहों के साथ पापी एवं शुभ ग्रहों के साथ शुभ। ज्योतिष, कानून, व्यवसाय, लेखन कार्य, अध्यापन, गणित, संपादन, प्रकाशन, खेल, वात, पित, कफ , हरे रंग, स्पष्टवक्ता, रजोगुणी, पृथ्वी तत्व, शरद् जाति, नपुंसक ग्रह, उत्तर दिशा का स्वामी, कन्या एवं मिथुन राशियों का स्वामी, एक राशि में लगभग १८ दिन, कन्या राशि में उच्च तथा मीन राशि में नीचे, शरद ऋतु का प्रधान, प्रिय नग पन्ना और धातु कांस्य।

कारक : वाणी, बुद्धि, विघा, मित्र सुख, मामा, शिशु आदि। चतुर्थ भाव का कारक।

रोग : नाड़ी तंत्र, दिमाग, फेंफडे, जीभ, बुद्धि, वाणी, शरीर की स्नायु प्रक्रिया, अस्थमा, गूंगापन, मतिभ्रम, नाड़ी कंपन, चर्मरोग, वायुविकार, बेहोशी, कुष्टरोग।

गुरु

सौरमंडल में सूर्य से काफी दूरी पर, सबसे बड़ा ग्रह, व्यास लगभग १ लाख ४२ हज़ार ७०० कि. मी. पृथ्वी से १० गुणा ज्यादा, लगभग ४८ करोड़ ५० लाख मील दूर, लगभग १३ महिना एक राशि को पूरा करने में समय लेता है, ९ घंटे १३ मि. अपनी दूरी पर घूमता है। १६ उपग्रह होते है।

विचार : स्थूल शरीर, आकाश तत्व, ईशान दिशा का स्वामी, कफ प्रक्रति, ब्राह्मण जाति, धर्म व नीति का महान पंडित, पीले रंग वाला, बड़ा पेट, मीन राशियों का स्वामी, कर्क राशि में उच्च प्रिय रत्न पुखराज धातु सोना।

कारक : सतोगुणी, पुरुष जाति, ज्ञान – बुद्धि, पुत्र, हेमन्त ऋतु का कारक, ग्रह, पुत्र – संतान, आध्यात्मिकता, ज्योतिष, पति सुख, धर्मशास्त्र, धन, विघा, बड़ा भाई, राज्य से मान सम्मान इत्यादि।

रोग : कब्ज, बेहोशी व कान, टाइफाइड, मोटापा, चर्बी, कमजोरी, पेट, गुर्दा व गैस, दायाँ कान, पाचन क्रिया, कमर से जांघ तक की बीमारी।

शुक्र

बुद्ध के बाद सौरमंडल में सूर्य के नजदीक रहने वाला ग्रह, बुद्ध से बड़ा, सब से ज्यादा चमकीला, व्यास लगभग १३३२० कि.मी. पृथ्वी के व्यास लगभग बराबर, पृथ्वी से दुरी ३ करोड़ ८५ लाख कि.मी. २२५ दिनों में सूर्य की परिक्रमा करता है, वृष एवं तुला राशियों का स्वामी, एक राशी में २८ दिन।

विचार : प्रेम – प्रसंग, सौंदर्य एवं आकर्षण का प्रतीक, शुभ ग्रह, जल तत्व, अग्नि कोण दिशा का स्वामी, रजोगुणी, सुन्दर नेत्र, खूबसूरत चेहरा, ब्रह्मण जाती एवं स्त्री ग्रह। संगीत, गायन, चित्रकला, सौंदर्य श्रृंगार, कवि, कला, विवाह – सुख, व्यापार, वाहन सुख, सुगंध प्रिय तेल, घर, मकान, शुगर तथा मैथुन।

कारक : स्त्री, वाहन, काम, वीर्य, सुख, वासना, आभूषण, चाँदी इत्यादि । सप्तमभाव का कारक, प्रिय रत्न हीरा धातु चाँदी।

रोग : गला, ठोढ़ी, कान, अंडाशय गुर्दा, आंतरिक कामवासनाएं, मुत्राशय संबंधी रोग, धात – प्रेमह, शुगर, पथरी एवं स्त्री को गर्भाशय संबंधी रोग।

शनि

सबसे दूर ग्रह, विचित्र वलये दिखाई देती है । नौ उपग्रह, साढे उन्तीस साल में सूर्य की परिक्रमा पूरी करता है, सबसे धीमा ग्रह, एक राशि में ढाई वर्ष भ्रमण करता है। पृथ्वी से ८९ करोड़ मील दूर, व्यास लगभग १ लाख २० हजार ८०० कि.मी.। लगभग साढ़े नौ गुणा पृथ्वी से बड़ा ग्रह, अपनी दूरी पर १० घंटे १५ मिनट में घूमता है, मकर एवं कुम्भ राशियों का स्वामी, तुला राशि में उच्च तथा मेष राशि में नीच, रात्री बली।

विचार : प्रत्येक कार्य में रुकावटों, लम्बा कद, कफ एव वात प्रक्रति, तमोगुणी, काला रंग, आलस्य युक्त, परजाति, नपुंसक ग्रह, वायु तत्व प्रधान, पापी ग्रह, सप्तम भाव में दिशावल मिलता है, प्रिय रत्न नीलम, धातु लोहा एवं पंचरत्न।

कारक : रोग, आयु, मृत्यु, नौकर, व्यापर, लौहा, दुःख, विपत्ति, कुटिलता, स्वार्थ, लोभ, मोह, राज्यदंड, विश्वाश घाट, कानून, जुआ, शराब, काला – कपड़ा, शल्य – चिकित्सा, स्वाधीनता, नर्वस–सिस्टम, गठिया, वायु – विकार, लकवा, दरिद्रता, मजदूरी, कर्ज, भूमि, ६, ८, १२ भाव का कारक।

रोग : जिगर, बायां कान, पिंडली, घुटने, हड्डिया, जोड़, स्नायु तंत्र, थकान, लकवा, अस्थमा, पक्षाघात, पेट की बीमारी, कैंसर, टी.बी. जैसे लम्बे रोग।

राहु

यह ग्रह भौतिक पिंड नही है, छायावादी ग्रह है, शनि की तरह स्वभाव, शुभ ग्रहों के साथ शुभ तथा अशुभ ग्रहों के साथ अशुभ फल। मिथुन राशि में उच्च तथा धनु राशि में नीच।

विचार : अचानक धन की प्राप्ति, तमोगुणी, मलिन स्वभाव, दक्षिण – पश्चिम दिशा का स्वामी, वायुतत्व, तीक्ष्ण बुद्धि, प्रिय रत्न गोमेद, धातु (पंच धातु), विज्ञान, खोज, शराब, स्नायु मंडल, जासूसी, आकस्मिक घटनाएँ, भूत, फोटोग्राफी, चित्रकारी इत्यादि कार्य ।

रत्न : गोमेद।

रोग : हार्ट – अटैक, कुष्ट रोग, चर्मरोग, पेट में कीड़ा बनना, मानसिक उत्तेजना, विष, पाचन संबंधी रोग।

केतु

राहु की तरह छायावादी ग्रह, भौतिक पिंड नही होता, कोई आकार नही होता, कुरूप, वर्ण संकर जाति, तमोगुणी, पापी ग्रह।

विचार : गुप्त विद्या, कठिन विद्या, तंत्र – मंत्र, घाव, चर्मरोग , चेचक, जहर। धनु राशि में उच्च मिथुन में नीच का होता है। प्रिय रत्न लहसुनिया।
रोग : गर्भपात, चर्मरोग, जलोदर रोग, फोड़े – फुंसी, चेचक, विष, तोड़ – फोड़ आदि।

 

कालसर्प दोष के प्रभाव

          कालसर्प दोष

  • राहु एवं केतु के एक ओर सभी ग्रह उपस्थित रहने पर बनता है ।
  • काल = मृत्यु अर्थात समय
  • सर्प = सांप
  • वैदिक रूप से राहु का अधिदेवता – ‘काल’ है। प्रति अधिदेवता ‘सर्प‘ है।
  • केतु का अधिदेवता ‘चित्रगुप्त ‘प्रति अधिदेवता‘ ब्रह्मा है।
  • सामान्यत : इसका प्रभाव जीवन भर होता है। लेकिन राहु अथवा केतु की दशा व अन्तर्दशा में इसके प्रभाव फलो का प्रादुर्भाव होते देखा जा सकता है ।
  • कालसर्प योग की गणना हमेशा राहु से लेकर केतु तक ही करना चाहिए, जो याद रखने योग्य है।

कालसर्प बारह प्रकार का होता है

  1. अनन्त कालसर्प दोष (प्रथम से सप्तम भाव)
    • जीवन में प्रभाव : शारीरिक एवं मानसिक रूप से कष्ट, जीवन में संकट, वैवाहिक परेशानी, बाल्यकाल में या बड़े होने तक पेट में कीड़े होना, शौच संबंधी कष्ट।
  2. कुलिका कालसर्प दोष (दिव्त्य से अटषम भाव)
    • जीवन में प्रभाव : राहु अशुभ होने पर कुटुम्ब, धन संबंधी परेशानियां, गुप्त रोग होने की संभावना, वाणी पर संयम न रख पाना, मुख, गले, साँस संबंधी रोग। शुभ होने पर अचानक धन की प्राप्ति, गढ़ा धन, लॉटरी, सट्टे इत्यादि से धन मिलने के योग, पारिवारिक खुशहाली, समाज में प्रतिष्ठा।
  3. वासुकी कालसर्प दोष (तीसरे से नवम भाव)
    • जीवन में प्रभाव : भाई – बन्धुओं के कारण परेशानीयो का सामना, विदेश से लाभ, तीसरे भाव में उच्च का राहु होने पर भाग्य, बुद्धि और कर्म में अधिक लाभ, प्रतिष्ठा का बढ़ना, राजनीति में सफलता, भाई – बहिन का सहयोग। गुरु की युति अथवा द्रष्टि होने पर भाई बहिन का सुख प्राप्त होता है, साहस में वृद्धि, उच्च लोगो से संबंध। शुभ फल स्त्री राशियो में तथा अशुभ फल पुरुष राशियों में।
  4. शंखपाल कालसर्प दोष (चतुर्थ से दशम भाव)
    • जीवन में प्रभाव : माता, स्थायी संपत्ति, वाहन सुख और पेट प्रभावित होते है चतुर्थ भाव का स्वामी निर्बल और राहु नीच राशि का होने पर जीवन में संघर्ष अधिक और आराम में कमी। मेहनत का फल नही मिलता गुर्दों व पथरी का रोग, माता – पिता व परिवार को परेशानी होती है । राहु उच्च का होने पर या कम होने पर मनुष्य अपने निवास स्थान की अपेक्षा विदेश में सुखी, कुण्डलीं में लग्न, दूसरा,, तृतीय, चतुर्थ व् कन्या राशि में शुभ फल देता है।
  5. पदम् कालसर्प दोष (पंचम से ग्यारहवे भाव)
    • जीवन में प्रभाव : शिक्षा, संतान, मेहनत का फल, जनता से सम्मान तथा शारीर में लीवर व आंत पर प्रभाव। आर्थिक स्थिति असुन्तुलित, सन्तान का देरी से होना या कन्या संतान का अधिक होना। पंचमेश नीच, वक्री, अस्त या राहु नीच राशि वृश्चिक या शत्रु राशि में होने पर, शुभ ग्रह की द्रष्टि न होने पर जीवन के शुरू के आधे भाग तक दुख भोगना। शुभ होने पर गुप्त विद्याओं का ज्ञान तथा मंगल राहु का योग होने पर कुटनीति का प्रयोग।
  6. महा पदम कालसर्प (छठे से बारहवे भाव)
    • जीवन में प्रभाव : रोग, शत्रु, मामा, मौसी पर प्रभाव, षष्ठेश निर्बल एवं पापग्रस्त या राहु के नीच होने पर गुप्त रोग या मामा अथवा मौसी की अकाल म्रत्यु, व्यर्थ खर्चे, गुप्त शत्रु भय तथा मातुल – पक्ष की हानि, दाँत एवं नेत्र संबंधी रोग, तरक्की में बाधा। उच्च का राहु होने पर शत्रु का स्वयं ही शत्रुता को मिटाना, दूर हट जाना, विदेश यात्रा, तर्क शक्ति प्रबल, बुद्धि को प्रयोग करने पर शत्रुओं का दमन अर्थात विजय प्राप्त करना।
  7. तक्षक कालसर्प दोष (सप्तम से प्रथम भाव)
    • जीवन में प्रभाव : वैवाहिक जीवन, सांझेदारी व दादा पर प्रभाव, सप्तमेश का छठे, आठवे या अशुभ भाव में होने पर या राहु नीच होने पर विवाह सुख में कमी, सांझेदारी में कष्ट, अधिक परिश्रम करने पर ही धन प्राप्ति, वैवाहिक जीवन में कलह का वातावरण बनना। शुभ होने पर एक जगह से संबंध टूटने पर दूसरी जगह वैवाहिक सुख प्राप्त होना, विवाह जल्दी होना और स्त्री राशि का राहु शुभ फल देता है।
  8. कर्कोटक कालसर्प दोष (अष्टम से द्वितीय)
    • जीवन में प्रभाव : मानसिक तनाव, आर्थिक तंगी, घरेलू उलझने अधिक होना। शुभ होने पर लम्बी आयु, जीवन के आधा बीतने पर भूमि, मकान, वाहन, सुयोग्य संतान सुख की प्राप्ति।
  9. शंखनाद कालसर्प दोष (नवम से तृतीय भाव)
    • जीवन में प्रभाव : भाग्य उदय देरी से होना, लॉटरी, जुआ, सट्टेबाज़ी, शेयर, रिश्तेदारों से धोखा, धन का अपव्यय और नाश । उच्च का होने पर स्वाभिमानी, जादू, तंत्र – मंत्र – यंत्र ज्योतिष, लॉटरी, शेयर आदि में रूचि, धनवृद्धि जैसी योजनाओ के संचालक।
  10. पातक कालसर्प दोष (दशम से चतुर्थ भाव)
    • जीवन में प्रभाव : आधा जीवन बीतने के बाद सफलता प्राप्ति, पिता सुख में कमी, झूठे आरोप झेलना। शुभ प्रभाव होने पर उच्च प्रतिष्ठित संस्थान में महत्वपूर्ण पद प्राप्त करना, योग्यता बल पर भूमि, स्त्री आदि सुखो को प्राप्त करना।
  11. विषाक्त कालसर्प दोष (ग्यारहवे से पंचम)
    • जीवन में प्रभाव : पिता या संतान पक्ष के कारण चिंतित, गुप्त आर्थिक परेशानिया, प्रथम कन्या संतान की संभावना, पारिवारिक सुख व सहयोग में कमी, अधिक मेहनत करने पर भी धन लाभ में कमी। शुभ होने पर लॉटरी, सट्टा, शेयर आदि में और अनेक यात्राओं द्वारा धन लाभ एवं एश्वर्य की प्राप्ति।
  12. शेषनाग कालसर्प दोष (बारहवे से छठा भाव)
    • जीवन में प्रभाव : सिर, नेत्र आदि अंगो में कष्ट, धन अत्यधिक खर्च होना, कुसंगति के कारण व्यसन आदि का शिकार हो जाना। शुभ होने पर व्ययशेष (बारहवे भाव का स्वामी) शुभ भाव में होने से जातक अपने जन्म स्थान से दूर भाग्योदय करता है। आध्यात्म, धार्मिक, लेखन, ज्योतिष आदि के क्षेत्र में विशेष रूचि।

ग्रहों की दृष्टि

1 सूर्य 7
2 चंद्रमा 7
3 मंगल 4, 7, 8
4 बुध 7
5 गुरु 5, 7, 9
6 शुक्र 7
7 शनि 3, 7, 10
8 राहु 5, 7, 9
9 केतु 5, 7, 9